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8 Apr 2022 · 1 min read

विरह वेदना जब लगी मुझे सताने

विरह वेदना जब लगी मुझे सताने।
मुझे लगने लगे अपने भी बिराने।।

जो लगती थी,मुझे तरु की शीतल छाया।
वो अब जला रही है मेरी निर्मल काया।।

खुली खिड़की से जो बहती थी मंद हवाये।
सता रही ऐसे जैसे कोई बैरन मुझे सताये।।

कोयल की बोली जो कभी थी भाती।
वही कोयल की आवाज मुझे सताती।।

होठों की लाली जो प्रिय लगती थी मेरी।
पिया के न आने से वो बैरन बनी मेरी।।

आंसू बहाकर अंखियां व्यथा सुनाती है मेरी।
आ जाओ अब सैया रात हो गई खूब अंधेरी।।

आर के रस्तोगी गुरुग्राम

Language: Hindi
4 Likes · 3 Comments · 746 Views
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