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28 Feb 2020 · 1 min read

विरह पीर

2122 1221 2212
उठ रही है विरह पीर अब क्या करूँ।
मन भी धारे नहीं धीर अब क्या करूँ।।
दर्द हद से भी ज्यादा है किससे कहें।
चुभ गया प्रेम का तीरअब क्या करूँ।।

एक पल दूर भी रह न पाती हूँ मैं।
मीन सी जल बिना छटपटाती हूँ मैं।।
जिंदा हूँ अब मगर जिंदगी ही नहीं।
लगतीं साँसें भी जंजीर अब क्या करूँ।।
उठ रही है ————————

कुछ नहीं मिल रही अब खबर यार की।
टूटी है आस जबसे ही दीदार की।।
इक जमाना हुआ मुस्कुराये हुये
आँख से बह रहा नीर अब क्या करूँ।।
उठ रही है———————-

हाल दिल का छुपाना भी मुमकिन नहीं।
और तुमको बताना भी मुमकिन नहीं।
जब कलम को सुनायी मैंनेदास्ताँ।
दर्द की लिख दी तहरीर अब क्या करूँ।।
उठ रही है————————

✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव
साईंखेड़ा

Language: Hindi
Tag: गीत
6 Likes · 2 Comments · 339 Views
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