विरह की रात…
आज विरह की रात थी
एक याद हमारे साथ थी
नयन भरे अश्रुधारा से
और लब पे तेरी बात थी
आज विरह की रात थी
जग था नींद के साये में
कुछ रिमझिम सी बरसात थी
मैं रोता रहा वहीं अकेला
बस बारिश मेरे साथ थी
आज विरह की रात थी
चमक नहीं थी तारों में
और चंदा भी मुरझाया था
इस घनघोर अमावस में
एक बिखरी सी बारात थी
मैं रोता रहा वहीं अकेला
बस बारिश मेरे साथ थी
आज विरह की रात थी
… भंडारी लोकेश✍️