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13 Jun 2023 · 1 min read

विरह का गीत

विरह के मरू में इन आंखों से
रोज न जाने कितने सावन बरसते है
चले गए जो सारा बसंत समेटकर इस जीवन से
क्यों उन्हीं के इंतजार में हम पतझड़ से तरसते हैं
रागिनी तुम्हारी यादों की हृदय के तार झंकृत कर तड़पाती है
सुर ताल मेरे तुम्हारे प्रेम से अलंकृत, वियोग का गीत सुनाती है
तिनका तिनका जोड़ कर जो सपनों का जहां सजाया था
रूठ कर क्यों चले गए तुम, देखो तो जरा हम सूखे पत्तों से बिखरते है
जीवन में विस्तार बहुत है परेशानियों का ,
अपने पास बुला लो हमें चलो एक दूजे में फिर सिमटते हैं

Language: Hindi
209 Views
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