विरह्नि प्रियतमा
अनंत युगों की बिछड़न
सदियों को समेटे बिरह
खोइ हुइ स्मृति महबूब की
लगे हुए लाखों दाग
कैसे आन् मिलु
साजन तुमसे
कसूर मुझसे हुआ
पतित्व मेरा नष्ट हुआ
मेरा प्रियतम से
दूर हुआ
त्राहिमाम त्राहिमाम त्राहिमाम नाथ मेरे
कैसे आन् मिलू साजन मेरे
मैं अभागिन हरजाई बेवफा
उम्मीद किस हक से करूं
दया निधान मेरे
विरह की अग्नि अब बस में नहीं
आस आपके प्यार की
बरसात की
हर पल मुर्शिद मेरे
दामन जो छूट गया तुम्हारा
आकर बचा लो प्राण मेरे