विमूढ.
विमूढ़
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दुनिया बैठी
तबाही के ढेर पर,
मर रहा इंसान,
छोटा सा इक वायरस,
ले रहा है सबकी जान.
काम-धंधे उजड़ गए सब,
सब कुछ हुआ बेजान.
गूंगे-बहरे, अंधे बने रहो विमूढ़ों
और बोलो जय श्री राम!
आम आदमी हुआ
गरीब, असहाय, बर्बाद
औ निकली अनेकों जान,
इकनॉमी का बैठा भट्ठा
तब भी डींगें हांक रहे
महाबली-बड़बोले श्रीमान.
गूंगे-बहरे,अंधे बने रहो विमूढ़ों
और बोलो जय श्री राम!!
स्कूल-कॉलेज सब बंद पड़े,
शिक्षा हो गई चौपट,
न कोई नीति, न ही न्याय,
हर किसी का हुआ जीना हराम,
गूंगे-बहरे,अंधे बने रहो विमूढ़ों
और बोलो जय श्री राम!!
बीमारी झेलें, गरीबी झेलें,
हर गड़बड़, हर घोटाले झेलें,
और तुम्हारे राज में कितना,
आह-कराह भरें श्रीमान
गूंगे-बहरे,अंधे बने रहो विमूढ़ों
और बोलो जय श्री राम!!!
मूर्तियां बनाओ, मंदिर बनाओ
अस्पताल मत बनवाना,
न सोचना किसी गरीब का
कल्याण-उत्थान,
बीच सड़क पर मर रहे लोग,
तुम पत्थरों में ढूंढो भगवान,
गूंगे-बहरे,अंधे बने रहो विमूढ़ों
और बोलो जय श्री राम!!!!
मंदिर-मस्जिद से क्या होगा-
कोई मुझे तो यह समझा दो,
बेरोजगारी हटेगी, अर्थव्यवस्था सुधरेगी
शिक्षा बढ़ेगी, इलाज मिलेगा-
क्या मिलेगा सबको ज्ञान-विज्ञान?
गूंगे-बहरे,अंधे बने रहो विमूढ़ों
और बोलो जय श्री राम!!!!