विन पैसा न होता मीत
ट्रेन मे पैसे खूब कमाता , विन पैसा न होता मीत
पैसों में दे दे देता सीट , काले कोट बहुत भयभीत
एक कोट जब जाये कचहरी, पैसोंमे बो गातागीत
सच को झूठा कर देता , झूठ से रखता यारो प्रीत
काले कोट का मर्म जाने, कैसी फैली आज कुरीत
सत्य धर्म को भूल रहा क्यो कैसी है ये इनकी रीत
सत्यमार्ग ये क्यो विसराता,क्या न इसकोतनसे प्रीत
नंगे लूले सब है भोग रहे क्यो न होता फिर भयभीत
हे”कृष्णा “इनका क्या होगा,क्या ईश्वर इनका है मीत
काले कोट का मर्म जाने, कैसी फैली आज कुरीत
✍कृष्णकांत गुर्जर धनौरा