विनती
विनती
मानव अंग, अनंग प्रभावी,
कलियुग में चहुँ ओर विकारी।
कहाँ छिपे हो, हे अविकारी !
हम पर पड़ी विपदा भारी ।
रसातलोन्मुख जीवनशैली हमारी,
भौतिक वाद के समक्ष मानवता हारी।
समस्त प्राणि हो रहे स्वेच्छाचारी,
कर्मक्षय से अधोगति होती जा रही।
जिन सद्गुणों से बने सुसंस्कारी,
उनका अभिधान करो, त्रिपुरारी !
सद्गुरु की कृपादृष्टि से सारी,
कामनाओं का शमन होगा हमारी।
-डॉ० उपासना पाण्डेय