विनती
हे प्रभो !
पृथ्वी के सब रुप रंग में
निरख सकूँ तेरी विराट सत्ता,
तेरी विराट जलराशि में
भिगो सकूँ अपना तन ही नहीं वरन मन भी,
तेरी दी हुई अग्नि सत्ता सूर्य से
तन ही नहीं, चेतन भी पुष्ट हो
और उसकी उष्मा
तेरे सामीप्य का अहसास जगा दे ।
तुझमें लय आकाश तत्व
मुझे वो अनाहत नाद सुना दे
और तेरा वायु तत्व
मेंरे प्राणों को उस परम प्राण से मिला दे ।
मैं अब बस तुझे ही पाना चाहती हूँ
अगर ये प्रणय निवेदन स्वीकार हो
तो थाम लो मेरा हाथ सदा के लिए
और देखो अब,
कभी खुद से अलग मत करना ।🙏