विनती
बड़ों से है यही विनती,मिले आशीष छोटों को।
उसे भी देखकर आए,हॅंसी नमकीन होंठों को।
करें गुणगान हम सबका,सदा सम्मान करना है-
वही सहना सिखाते हैं,जगत के नर्म चोटों को।।
बड़ों से है यही विनती,मिले आशीष छोटों को।
उसे भी देखकर आए,हॅंसी नमकीन होंठों को।
करें गुणगान हम सबका,सदा सम्मान करना है-
वही सहना सिखाते हैं,जगत के नर्म चोटों को।।