*विनती है यह राम जी : कुछ दोहे*
विनती है यह राम जी : कुछ दोहे
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गीता है सिद्धांत-मणि, रामायण व्यवहार
दो पट यह जब-जब खुले, खुला धर्म का द्वार
2
रावण तेरे जन्म को, सौ-सौ बार प्रणाम
प्रभु जी जिस कारण बने, दशरथनंदन राम
3
हम बालक हैं आपके, दोषों के भंडार
विनती है यह राम जी, कर दो बेड़ा पार
4
किस कारण रावण हुआ, किस कारण से राम
कहीं काम वरदान का, कहीं शाप का काम
5
मनु-शतरूपा को मिले, पुत्र-रूप में राम
धन्य-धन्य वरदान यह, सौ-सौ बार प्रणाम
6
गहन कर्म-गति को भला, किसने जाना गूढ़
कारण होते हैं कई, जान न पाते मूढ़
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451