विध्वंस धरा पर क्यों ?
तेरी यादों में जन मुरझाये हुए हैं
सोच सोच कर भी सुखाये हुए हैं;
क्या यही हश्र होता रहेगा
देश कब तक लाल खोता रहेगा!
भावनावों में जन आज खो रहे हैं
असहाय हो , कैसे बिलख रहे हैं
क्या यही दिन देख रोते रहेंगे
ऐ वीर! क्या ऐसे जियेंगे !
शोणित बहती रहेगी, मस्तक कटता
रहेगा
चीख पुकार बहुत, मानवता लूटता रहेगा;
अन्याय की प्रहार से भयावह विध्वंस होगा
या वसुधा की पुकार से कोइ हर्ष होगा!
भारत की करूण पुकार है वीरों
हर बलिदानी की चित्कार है
वीरों
विध्वंस की निशानी विध्वंस से
मिटेगी;
शहनशीलता,दया अब कहां ?
अत्यधिक अन्याय अब ना सहेगी !!!
अब देशहित मरना है
नहीं अधिक जीना हैै
ले वज्र को उठा वीर सपूतों;
‘अरि’ को विभत्स मर्दन करना है !
अखंड भारत अमर रहे
जय हिन्द!!!