विधि का विधान ही विज्ञान
“विधि का विधान ही विज्ञान”
पेड़ों के अवशेष जल रहे, खड़े पेड़ सब हाथ मल रहे।
जहरीली गैसें पीकर भी तरु यही खड़े हैं नहीं टल रहे।
अपने फल भी ना खायेंगे ये वर्षा धूप शीत सह लेंगे।
सब इनके थे इनके ही हैं अरु इनके होेकर भी रहेंगें।
वर्षा के जल में घुलके वो धुएँ के कण भी इनके होंगें।
पशु-पक्षी,कृमि,कीट-पतंगे,मृत मानव भी इनके होंगें।
पर पर्यावरण दिया पुरखों ने उसमें जीना सपनें होंगें।
दुःख तो इसी बात का है ! ये ‘मानव’ कब अपने होंगें ?
हैं कीट,जन्तु,पादप धरती पर मूलभूत विधि की संतान।
कीट करे मकरंद पान तब गति पकड़े विधि का विधान।
”जैव विविधता संरक्षण” हित परहित में जब धरें ध्यान।
आसानी से समझ सकेंगे क्या कहता विधि का विधान।
कीट ”परागण” से अनजान सो अपना काम करे विज्ञान।
तुम चाहो तो यूं समझो ! क्या कहता है विधि का विधान।