विधा गीतिका
शुद्ध पावन सुगर्भित विधा गीतिका ।
भाव श्रंगार पूरित विधा गीतिका ।।
गीतिका छंद छन्दों का’ गलहार है ;
तो है कुण्डल सुमंडित विधा गीतिका ।
मापनी और छंदों का बाना पहन ;
भाव श्रृंगार पूरित विधा गीतिका ।
एक मुखड़े में’ दुनिया समेटे हुए ;
पैंग भरती विभूषित विधा गीतिका ।
दूर मनका तलक लोकती सुन्दरी ;
भाव आसन विराजित विधा गीतिका ।
चेतना सुप्त जीवन में भरती हुई ;
मापनी लय सुसज्जित विधा गीतिका ।
प्रीत के पाग में पग चुके राग सी ;
मन में छोरों में मुखरित विधा गीतिका ।
गुदगुदाती रुलाती व बहलाती’ भी ;
माँ की’ ममता से’ पूरित विधा गीतिका ।
नव दिशा की नई वाहिका आ गयी ;
कर रही जग को’ सूचित विधा गीतिका ।
हो गया छंद संसार ‘स्मित’ जब दिखी ;
संस्कारों सी’ पूजित विधा गीतिका ।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’