विधा कुण्डलिका रक्षाबंधन पर
यादें हैं बचपने की, राखी है बँधवाए।
मुँह में मिठाई खाये, एक रूपया टिकाए।।
एक रुपया टिकाए , चार दूरहीं दिखाये।।
बारि बारि चिढ़ाये ,रूठूँ पास आए मनाये
भगिनी संगी खेले , कुछ न कुछ चीज खिलाये
माँ देखी मुस्काए ,सोच प्यार भरी यादें।
सज्जो चतुर्वेदी*******