विदा
कितना असहज है
अपने किसी को विदा करना
चाहे घर का हो या बाहर का
कितना असहज हैं
अपने किसी को विदा करना ।
गर हो बेटी तो बहुत मुश्किल
आंसूओं से भीगा आंचल
मन में उद्घाटित कसमसाहट
नापाक नजर से बचे रहना
कितना असहज है ।
गर धंसा हो कोई दिल में
एक घर बना लिया हो अपना
प्रीत कोपलों की बाल्यावस्था
दूर अपने आपको रखना
कितना असहज है ।
एक पड़ाव पार कर लिया हो
प्रेम वटवृक्ष बड़ा हो गया हो
इस काट दे कोई जड़ सहित
दर्द अपना तब बयां करना
कितना असहज है ।