विदा किया
विदा किया,
जा तुझे विदा किया,
जिस तरह पंछी दे देते हैं विदा,
नही रखते हैं कोई अपेक्षा
जिन्हें देते है जन्म,
बिना किसी स्वार्थ के,
छोटे से अपने हिस्से को,
खिलाते-पिलाते,
संभालते-बताते,
उन्हें उड़ना सिखाते,
लम्बी उड़ान के लिए करते तैयार,
बिना स्वार्थ के,
देते उन्हें आसमान,
जब सीख जाते वह उड़ना,
छोड़ फिर जाते उनका साथ,
न मोह का बँधन
न स्वार्थ न कोई उम्मीद,
न आस न प्रतिकार,
करती हूँ विदा तुम्हें,
उसी प्रकार,
तुम्हारे हिस्से का आसमान,
तुम्हें है पुकारता,
भरो ऊँची उड़ान,
और छू लो अपने सुनहरी सपनों को,
तुम्हारी उड़ान,
देगी मुझे स्वार्थहीनता,
मोह का अंत,
मेरे वजूद को अंनतता,
ख़त्म होंगे अध्याय,
अधिकार और एहसान के,
तुम्हारी उड़ान होगी मेरा मुक्तिबोध….