विदाई का त्योहार
सूना गूरूजी से की विदाई का आया त्यौहार ।
मैं थम गया अब कैसे जाऊ मैं उस पार।।
शिक्सा की शाला में अनोखा दोस्तो का साथ।
कदम से कदम मिलाया,हाथो में मिलाया हाथ।।
वो दोस्ती का दामन बढाकर निभाने वाले ।
मेरी कस्तीयों मैं सूरज की रोशनी दिखाने वाले ।।
दोस्तो ने मेरा सपना सुन हौंसला और बढाया ।
रास्ते में काँटो को बताकर साथ चलाना सिखाया।।
विदाई ऐसा वैश लिये आँसूओ से रूलाता ।
पर हर मोड पर दोस्ती का दामन छूट जाता।।
सुना गुरूजी से की………………1
विवश था ये सोचके की मूझे आगे बढना हैं ।
कुछ अपनो के लिए बहूत कुछ कर बताना हैं ।।
दोस्ती का दरिया टूटा आँचल भरता उपहास ।
सहम गया,बिछडने के समय न हुआ प्रयास ।।
आगे तो जाना हैं पर हैं मूझे दोस्ती का गुमान।
सुना हैं की दोस्ती टूटती नही पर मैं अंजान।।
दोस्तो का दोष नहीं ये समय की अटखेलियाँ ।
विदाई लेके ही चढना हैं नई नवेली सिढियाँ ।।
मेरे ऐसे भागीदारी लाये अखियों की बहार ।
समय ने दूर किया हमें, हमारा समय गुनहगार।।
सूना गुरूजी से की ……………… 2
रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मुण्डकोशियां
7300174927