विडम्बना और समझना
विडम्बना और समझना
करूं मैं विवरण
आज का जीवन।
एक लम्बी दौड़ है
आपसी होड़ है।
स्वयं से अंजान है
समझ से नादान है।
संस्कृति का विरोध है
विलासिता का भोग है।
मन भरा अहंकार है
हर वस्तु में विकार है।
हर एक मनु भेंड़चाल है
सबके पास बस सवाल है।
तन-मन जीवन सिरफिरा है
हर एक विवाद से घिरा है।
आत्मीयता के सूत्र टूटे हैं
अपनो से ही अपने रूठे है।
मानवीय ज्ञान से कंगाल है
अब पढ़ाई फैक्ट्री का माल है।
कहीं तो संस्कारों की कमी है
इसलिए नयनों में दिखी नमी है।
देखने में चेहरे श्वेत उज्ज्वल है
फिर क्यूं भरे उर कलिमल है।
जीवन भौतिकता के सहारे है
अमीर बन कर भी बेचारे है।
सब पाने में सुकून विहीन है
अंतहीन आपाधापी में लीन हैं।
मानव जीवन अति अनमोल है,
हर एक अणु का मोल है।
-सीमा गुप्ता, अलवर राजस्थान