*विडंबना*
उसे फूल तो पसंद है, बागवाँ पसंद नहीं;
उसे खुशबू तो लुभाए है, बाद-ए-सबा पसंद नहीं ।
वो जो फूल है आज, कली थी कल –
माली ने सींचा संभल-संभल –
उसे आँधी से, बरसात से –
बचाया था हर आघात से –
पर उस चमन को छोड़ कर –
मोह का बंधन तोड़ कर –
उसे जाना पड़ा है और कहीं –
जहाँ उसकी कोई क़दर नहीं –
वो अपने चमन से दूर है –
और दिल से बहुत मजबूर है –
पर जिसके चमन की वो शान है –
वो संगदिल बड़ा इंसान है –
चाहता है उस कली से अब रहे माली का कोई संबंध नहीं–
वरना गुलदस्ते में फूल को रखने को वो रज़ामंद नहीं–
उसे फूल तो पसंद है , बागवाँ पसंद नहीं–
उसे खुशबू तो लुभाए है, बाद-ए-सबा पसंद नहीं–
लगाई दुनिया भर की बंदिशें –
उसे बेहिसाब है रंजिशें –
करे कली बेचारी तो क्या करे –
रस्म-ओ-रिवाज़ से वह भी डरे –
मन में दबा कर मन की आस –
रहती है वह ग़मगीं उदास –
पर इसका कहाँ उसपर असर –
इसके रंज-ओ-ग़म से हो बेख़बर –
चलता जा रहा है धुन में मगन –
छूने को वह विस्तृत गगन –
कली रो रही तो रोया करे –
उसकी किस्मत यही कोई क्या करे –
यही चलता रहा तो एक दिन बचेगा उसके पास सुगंध नहीं–
फिर कहीं उठाकर फेंक न दे, उसकी किस्मत भी कुछ बुलंद नहीं–
उसे फूल तो पसंद है , बागवाँ पसंद नहीं –
उसे खुशबू तो लुभाए है, बाद-ए-सबा पसंद नहीं –