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रूपा- यथा नाम तथा गुण। गजब की सुन्दर, माथे पर चमकीली बिन्दी, आँखों में काजल, उजले मुखड़े, मांसल काया। चौराहे में सब्जी की दुकान में बैठते ही ग्राहकों की भीड़ बढ़ जाती थी।
वह पुरुष की कमजोरी जानती थी। इसलिए शायद गले के नीचे का दूर तक का भाग खुले ही रखती थी।
रूपा वैसे तो पढ़ी-लिखी कम थी, लेकिन यह अच्छी तरह समझती थी कि विज्ञापन के बिना बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ दिवालिया हो जाती हैं और अच्छे विज्ञापन से खराब माल भी आसानी से बिक जाता है।
प्रकाशित लघुकथा-संग्रह :
‘ककहरा’ (दलहा, भाग-5) से,,,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक।