पयार हुआ पराली
** पयार हुआ पराली**
जब खाना सोना था पयार पर सोने भरी थी थाली,
हर किसान घर होता था एक बढ़िया मूसल गाली।
गाय, भैंस, अरु बैल, बछेड़ा प्रेम से खाएं पराली,
गोबर की खाद पड़े जो खेत तो मन मोहै हरियाली।
चारा ,रस्सी और बिछौना, छप्पर बना पराली का,
रिश्ते जग में अगणित हैं पै अद्भुत है घरवाली का।
आज कृषक बाइक पर घूमें करें जुताई ट्रैक्टर चूमें,
अस्तबलों में अश्व नहीं इसमें क्या दोष पराली का।
डिब्बा बंद दूध पीते हम गाय भैंस के बिन जीते हम,
दूध बिन खीर पके कैसे क्या हो उपयोग पराली का।
अब जले पराली खेत – खेत सब हुईं दिशाएं काली,
चार दशक के पहले हमसब करते थे उपयोग पराली।
जब थर्माकोल की माँग बढ़ी हो गई बेकार पराली,
भूखन मरैं अन्नदाता उद्यमियों के घर में खुशहाली।
मांटी थर्माकोल विराजे खेत की उर्वरता खा डाली,
सूक्ष्म जीव बेमौत मर गए उर्वरकी खपत बढ़ा ली।
पैकेजिंग में आज भी कोई सानी नहीं पराली का,
सड़ गल कर उर्वरा बढ़ाए रुके न पानी नाली का।
‘यूज एंड थ्रो’ नीति समर्थन फिर से मिले पराली को
पत्नी और प्रेमिका का सम्मान मिले घरवाली को।।