विज्ञान और मानव
हम ज़हर खाते हैं
पीते हैं, ज़हर में जीते है
मरते नहीं
जीने के लिए यह सब करते हैं
विषपान करके
हम शिव जैसे जीते हैं
शिव नीलकंठ कहलाए
और हम
शिव के गले में लिपटे भुजंग से अधिक विषैले
उत्पादन की लालच ने
ज़हरीला कर दिया अनाज
वाहनों की प्रदूषित ध्वनि और धुआं
नालियों का तरल ज़हर पहुंचता है नदी,नाला कुआं
कुरूप पवन देव सकुचाते है
विज्ञान का दुरुपयोग करने के बाद भी
हम विज्ञान वरदान है गाते हैं