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23 Mar 2020 · 1 min read

*विज्ञान और मानव*

उड़ रहे थे हम अपनी अहम नियत में,
छानना चाहा समंदर क़ाबिलियत में!

घुटने टिके विज्ञान तेरे एक झटके में,
समेटकर रख दिया झट तूने मटके में!

अब आलम है ये हमारे शहर-बस्ती का,
खाली दफ़तर हैं बना माहौल गस्ती का!

जान है जब तक जहां में नाम हस्ती का,
दुबकाअब संसार कहाँ माहौल मस्ती का!

जात-पात, वर्ग-भेद, सब स्रोत स्वारथ के,
आपत्ति में ‘मयंक’ सुर निकले परमारथ के!

उड़ान मंगल-चाँद लगे आशा अधूरी-सी,
आसमान-ए-बुर्ज कहानी इक अधूरी-सी!

इंसानियत कर टूक हमने कितने इंसा मिटा दिए,
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के हमने चिथड़े उड़ा दिए!

मूल रचनाकार : के.आर.परमाल ‘मयंक’

Language: Hindi
1 Like · 268 Views
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