Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Sep 2019 · 2 min read

पुनर्वास

पुनर्वास
–///-
हार्ट अटैक का पहला झटका झेलने के दूसरे ही दिन रमाकांत जी की अपनी निजी पुस्तकालय की सभी पुस्तकें जिला ग्रंथालय को दान करने के फैसले से मालती चकित थी।
लगभग पचपन साल पहले जब रमाकांत से उनकी शादी हुई थी, तब घर में यत्र-तत्र-सर्वत्र किताबें ही किताबें बिखरी पड़ी रहती थीं। शादी के बाद मालती ने दो अलमारियाँ खरीदीं और उन किताबों को व्यवस्थित किया।
समय के साथ उनके दोनों बच्चे बड़े होते गये और रमाकांत जी की पढ़ने-लिखने की आदत से अलमारियों की संख्या भी बढ़ती चली गई।
बच्चे अब अपने पैरों पर खड़े होकर अलग-अलग शहरों में अपने-अपने बीबी-बच्चों के साथ बस गए।
तीज-त्योहार पर सब इकट्ठे होते, तो बहू-बेटे उनसे कहा करते कि इतनी सारी किताबें रखने का क्या लाभ ? जो जरूरी हैं, उन्हें रखिए, बाकी सब को किन्हीं जरूरतमंद व्यक्ति या कबाड़ी को दे दीजिए। पर रमाकांत जी कहाँ मानते, वे उनसे अक्सर कहा करते थे, “इन किताबों के साथ हमारी कई खूबसूरत यादें जुड़ी हुई हैं। इन्हीं किताबों से दर्जनों लोगों को पीएच.डी. की डिग्री पाने में मदद मिली है। ये किताबें मेरे अकेलेपन के साथी हैं। इन्हीं किताबों के कारण आज भी लोग मेरे पास आते हैं। इन्हीं से मेरी पूछ-परख बनी हुई है। इन्हें कैसे किसी को भी दे दूँ।”
परंतु अब ये अचानक सभी किताबें दान करने का विचार मालती की समझ से परे था। अंततः उसने इसका कारण पूछ ही लिया।
रमाकांत जी लंबी सांस ले छोड़ते हुए बोले, “मालती, इनका हमारा साथ अब ज्यादा लंबा नहीं है। पहला झटका तो किसी तरह मैंने झेल लिया, अब आगे क्या भरोसा। दोनों बच्चे अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त हैं। मुझे पूरा यकीन है कि मेरे बाद ये इन किताबों का भी अंतिम संस्कार कबाड़ी के हाथों कर ही देंगे, जो हम कभी नहीं चाहेंगे। तुम्हें याद है शादी के बाद कई बार हम मेरी बड़ी संख्या में इन किताबों और पत्रिकाओं को खरीदने की आदत को लेकर झगड़े हैं। यहाँ तक कि कई बार दो-दो दिन तक हमारी बातचीत भी बंद रहती थी। इन किताबों के कई प्रसंग मैंने तुम्हें जबरन भी सुनाए हैं। हमारे बच्चे भी इन पुस्तकों से ही बहुत कुछ सीख कर आज अपने पैरों पर खड़े हुए हैं। अब अपने जीते-जी कबाड़ी को देकर कैसे इनका अंतिम संस्कार कर दूँ ? इनका पुनर्वास जरूरी है मालती। ग्रंथालय में ये हमारे बाद भी अनगिनत लोगों के काम आएँगी।” कहते-कहते रमाकांत जी का गला भर आया था। पत्नी की ओर देखा, शून्य में ताकती दोनों आँखों से आँसू की धारा बह रही थी।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 348 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
💐प्रेम कौतुक-465💐
💐प्रेम कौतुक-465💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
तुम जख्म देती हो; हम मरहम लगाते हैं
तुम जख्म देती हो; हम मरहम लगाते हैं
डॉ. श्री रमण 'श्रीपद्'
Desires are not made to be forgotten,
Desires are not made to be forgotten,
Sakshi Tripathi
"मोमबत्ती"
Dr. Kishan tandon kranti
आवारा परिंदा
आवारा परिंदा
साहित्य गौरव
2678.*पूर्णिका*
2678.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
प्रेम
प्रेम
Sushmita Singh
धर्म की खिचड़ी
धर्म की खिचड़ी
विनोद सिल्ला
Consistency does not guarantee you you will be successful
Consistency does not guarantee you you will be successful
पूर्वार्थ
रोम रोम है दर्द का दरिया,किसको हाल सुनाऊं
रोम रोम है दर्द का दरिया,किसको हाल सुनाऊं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
Image of Ranjeet Kumar Shukla
Image of Ranjeet Kumar Shukla
Ranjeet Kumar Shukla
✍🏻 ■ रसमय दोहे...
✍🏻 ■ रसमय दोहे...
*Author प्रणय प्रभात*
सफलता
सफलता
Paras Nath Jha
जनवरी हमें सपने दिखाती है
जनवरी हमें सपने दिखाती है
Ranjeet kumar patre
A Departed Soul Can Never Come Again
A Departed Soul Can Never Come Again
Manisha Manjari
वसुत्व की असली परीक्षा सुरेखत्व है, विश्वास और प्रेम का आदर
वसुत्व की असली परीक्षा सुरेखत्व है, विश्वास और प्रेम का आदर
प्रेमदास वसु सुरेखा
*चंदा (बाल कविता)*
*चंदा (बाल कविता)*
Ravi Prakash
बदलता साल
बदलता साल
डॉ. शिव लहरी
कलयुगी धृतराष्ट्र
कलयुगी धृतराष्ट्र
Dr Parveen Thakur
वक़्त को वक़्त
वक़्त को वक़्त
Dr fauzia Naseem shad
कभी बारिश में जो भींगी बहुत थी
कभी बारिश में जो भींगी बहुत थी
Shweta Soni
मैं जी रहीं हूँ, क्योंकि अभी चंद साँसे शेष है।
मैं जी रहीं हूँ, क्योंकि अभी चंद साँसे शेष है।
लक्ष्मी सिंह
ठंडक
ठंडक
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
नया मानव को होता दिख रहा है कुछ न कुछ हर दिन।
नया मानव को होता दिख रहा है कुछ न कुछ हर दिन।
सत्य कुमार प्रेमी
बच्चों के पिता
बच्चों के पिता
Dr. Kishan Karigar
मैं तुलसी तेरे आँगन की
मैं तुलसी तेरे आँगन की
Shashi kala vyas
ऐसे नाराज़ अगर, होने लगोगे तुम हमसे
ऐसे नाराज़ अगर, होने लगोगे तुम हमसे
gurudeenverma198
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
Manoj Mahato
हर कोई जिन्दगी में अब्बल होने की होड़ में भाग रहा है
हर कोई जिन्दगी में अब्बल होने की होड़ में भाग रहा है
कवि दीपक बवेजा
गुरु से बडा ना कोय🙏
गुरु से बडा ना कोय🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
Loading...