विजेता
आपने पढ़ा कि शमशेर और राजाराम नामक दो निसंतान व्यक्ति अपनी पत्नियों के साथ पाँच बरसी बाबा के दर पर जाते हैं और बाबा जी उन्हें बताते हैं कि किशोरावस्था में गुस्से में गऊ को मारने के कारण वे निसंतान हैं। बाबा जी उन्हें किसी ग्वाले को गायों सहित आने पर कुछ उम्मीद जताने की बात कहते हैं। साथ ही शर्त रखते हैं कि ग्वाला अपनी मर्जी से आना चाहिए। वे लोग गायों या ग्वाले को बुलाएँगे तो कोई फायदा नहीं होगा। फिर भाग तीन में आपने रामबीर व उसके भाई टोपसिंह(टोपिया) के बारे में जाना कि दोनों भाई प्यार से रहते हैं। रामबीर को अपनी शादी की चाहत है ताकि घर में एक औरत आ जाए। उसका दूर का एक रिश्तेदार रिश्ता लेकर आया है। अब आगे-
रामबीर ने अपने भाई टोपिया से कहा,”मौसा जी की खात्तिर हुक्का भर ला।”
हुक्के का दम भरते हुए मौसा जी ने रामबीर से कहा,”देख बेटा, लड़की गरीब घर की है पर है सुघड़।”
“मौसा जी,मैं क्या धन्ना सेठ हूँ जो पैसे वाला घर चाहूँगा।”
“वह एक विधवा की बेटी है। बाप भी मजदूरी करता था। छह बहनों में सबसे छोटी है।”
“मौसा जी, औरत एक घर को, औलाद को संभाल सकती है पर एक आदमी के लिए ये सब पहाड़ जैसा होता है। इस घर को एक लक्ष्मी की जरूरत है। माँ-बाप के बिना हमारा कौन है। एक आप ही हैे जो हमें सहारा दे सकते हैं।”
“ठीक है। एक बार दिखा दूंगा मैं तुझे।”
“उसकी जरूरत नहीं है,आपने देखा है,वही बहुत है।”
“फिर कल को नुक्स मत निकालने लग जाना!”
“नहीं मौसा जी, औरत के बिना ये घर ही नुक्स वाला हो गया है। वह काली, कानी,मंधरी-मोटी कैसी भी हो, बस मेरे घर आ जाए।”
रामबीर की यह बात सुनकर वह रिश्तेदार समझ गया कि यह बिना दहेज के शादी कर लेगा। उसके मन को टोलते हुए वह बोला,”वो काली,कानी,मंधरी या मोटी नहीं है बेटा। वह गरीब है। दहेज में ज्यादा—-।”
उसकी बात को बीच में ही काटते हुए रामबीर बोला,”किसे चाहिए दहेज? मैं अपने बाप की चार एकड़ जमीन में इतना कमा सकता हूँ कि अपने भाई और पत्नी का पेट पाल सकूं। वह घर संभाल लेगी और मैं खेत—-।”
बीच में ही मौसा जी बोल पड़ा,” रुक जा रामबीर, रुक जा। शेख- चिल्ली मत बन।अभी सगाई की रस्म भी पूरी नहीं हुई है तेरी और उसकी, और तूं पत्नी के सपने संजोने लगा।”
यह सुनकर रामबीर झेंप गया। उसने शर्माते हुए कहा,” वो भी हो जाएगी आपके सहारे।”
रामबीर का मौसा अपने गाँव पहुँचकर उसी विधवा के घर पहुँचा जिसकी बेटी की बात वह रामबीर से करके आया था। उसने उस औरत से कहा,”ताई, मैं रोजो बाबत लड़का देख आया हूँ।”
यह सुन उस मजदूर औरत ने कहा,”भला हो बेटा तेरा, पर जोड़ी मिलाई के ना?”
“ताई! पक्का काम कर आया हूँ। ऐसा जोड़ीदार ढूंढ़ा है कि राजो राज करेगी। चार एकड़ पुश्तैनी जमीन है। पाँच गाय-भैंस हैं।एक जोड़ी तगड़े बैल हैं और लड़का दारू से दूर—–।”
बीच में ही वह बुढिया बोल पड़ी,”मजाक तो ना कर बेटा। कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली।”
“ताई! मैं इस गाँव का मुखिया हूँ और इस नाते गाँव की हर बेटी-बहन मेरी खुद की बेटी-बहन हुई। मैंने अपनी इस बहन के लिए जो लड़का ढूंढा है, उसे दहेज में साइकिल, घड़ी, पलंग कुछ ना चाहिए। मैने सब सस्ते में तय कर लिया है।”
“सस्ते में तय कर लिया है मतलब?”
“देख ताई, मैं मुखिया हूँ। इस नाते आप जैसी बेसहारा औरतों को सहारा देना अपना फर्ज समझता हूँ मैं। मैं चाहता हूँ कि इस गाँव में मेरे रहते कोई कष्ट में ना रहे।”
“वो तो ठीक है बेटा, पर दान कितना लेंगे वे लोग?”
“लड़के के माँ-बाप नहीं हैं ताई। एक छोटा भाई है। उन्हें बस ग्यारह सौ रुपये चाहिएं।”
“ग्यारह सौ? मतलब एक हजार और सौ? ना बेटा, मैं इतना ना कर सकूं।”
“एक बार सोच ले ताई! छौरी मौज करगी।”
“इतना देना मेरे बश की बात ना है।”
“ठीक है। आप कितना दे सकती हैं?”
“मैं तो एक सौ और इकावन रुपिया दे सकूं।”
“क्या ताई तूं भी! बेटी को राजा मिल रहा है और एक तूं है कि जान-बूझके मुंह फेर रही है।”