विजय की मात
जल रही है आग बारूद की,
हॉं ठंडी रात होनी चाहिए।
शांत माहौल के लिए कोई,
हॉं यारो बात होनी चाहिए।
हाल ए दिल भी परेशां है,
दशा देखकर यहां पर आज,
ओ’मुसाफिर’इस जगह पर,
तो अभी बरसात होनी चाहिए।
जिंदगी आसान अब कैसे यहां,
कोई गुजारेगा सुनो,
लूट रहे हैं आबरू जो उन से,
यारो वारदात होनी चाहिए।
जो गुलामी बेड़ियां है पांव में,
अब तोड़नी होगी सभी,
लो उठा लो सब कमान जंग की,
अभी शुरूआत होनी चाहिए।
जब उठेंगे हाथ तो सब ठीक ही,
होगा चलन देश का यहां,
लो चलें एकसाथ उन से बस,
विजय की मात होनी चाहिए।।
रोहताश वर्मा ” मुसाफिर “