विचित्र ख्याल
कैसा विचित्र आ रहा ये ख्याल है।
मन ही मन में उठ रहा ये बवाल है।
अश्क तो आए ही नहीं नैनन से अब
अजीब सा ये एक सवाल है।
बात खुद से ही जब सन जाए।
लग रहा है खुद से ही ठन जाए।
रास्ता अब कोई दिख रहा नही।
दुख तो है पर कभी कहा नही।
चोट तन की हो तो सह लेते।
कोई अपना हो तो कह लेते।
सोच के फिर से खामोश हूं
उलझनों में फिर से आगोश हूं।।
जिंदगी का ये कोई अध्याय है।
आदमी लग रहा असहाय है ।
हर कोई यहां बैठा मजबूर है।
खुश वही जो किसी में चूर है।।
चलो ना फिर से शुरूआत करते है।
एक दफा खुद से बात करते है।
तोड़ दे गुरूर जो शख्सियत का
प्रेम से वो दुआ सलाम करते है।।