*विक्रम संवत (सात दोहे)*
विक्रम संवत (सात दोहे)
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1)
विद्यालय में कब पढ़ा, विक्रम संवत वर्ष।
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, फिर कैसे दे हर्ष।।
2)
क्यों होती जन्माष्टमी, नवमी पर क्यों राम।
विक्रम संवत में छिपे, इनके अर्थ तमाम।।
3)
विक्रम संवत से मने, अपने सब त्यौहार।
भूले हम संवत वही, संस्कृति का आधार।।
4)
पूर्ण चंद्रमा कब हुआ, कब मावस की रात।
विक्रम संवत को पढ़ो, बन जाएगी बात।।
5)
विक्रम संवत में छुपा, भारत का इतिहास।
यह भूले जब से हुआ, निज संस्कृति का ह्रास।।
6)
जून-दिसंबर ज्ञात है, भूले जेठ-असाढ़।
भाषा-रीति रिवाज में, पश्चिम की अब बाढ़।।
7)
राम-कृष्ण की जन्म तिथि, किसको है अब याद।
माघ-पूस से लुप्त है, अपना सब संवाद।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451