विकाश के ‘वायरस’
प्रजातंत्र द्वारा नवोदित
लाठीधारी
लाठी द्वारा
हथियाये नेतृत्व के दरबारियों में
लाठी–संस्कृति के लिए
अखाड़ा–सभ्यता हेतु
बहुत मोह है।
और आहॐ
कितनी भरी है लिप्सा‚लालसा व लोभ
सम्राटों की तरह व्यवहार करने की
और सामंतवादों के सोच
अपनाकर
सामंतों के कतार में
शीघ्रातिशीघ्र खड़े होने की।
रईस जैसे शब्द सुनने की।
शुरू हो गया है
प्रजा का कत्र्तव्य
कि प्रजा करे
अपने अधिकारों का
खुलकर निडर प्रयोग।
ईश्वर शैतानों को
नकारता आया है
ईश्वर प््राजा है।