— वाह डाक्टर साहब —
कुछ दिन पहले
पत्नी जी को हो गया बुखार
बोली जल्दी ले चलो
अब डाक्टर साहब के द्वार
बैठा के अपनी गाडी पर
चल दिआ मैं उनके दरबार
वहां पहुंचते देखा जैसे
डाक्टर था बैठा तैयार
बिना मेरे बोले वो कहने लगा
बुखार को छोड़ के
जो भी चाहो दवा मैं दे दूंगा
बुखार के लिए अब मैं न
हो जाऊं बीमार
इस लिए जाकर पहले
कोरोना का टेस्ट करवाओ मेरे यार
मैं बोला डाक्टर साहब
कैसी बात आप करते हो
इनको वायरल हुआ है
कोरोना नहीं है , वरना
मैं भी न हो जाता बीमार
इतने में पत्नी जी बोली
जो आप दवा देते थे पहले
वो दे दो ताकि आ जाए आराम
हम तो आपके पुराने हैं मिलने वाले
आप ऐसी बात न करो
नहीं तो मेरे को और हो जाएगा बुखार
लिख के दिया परचा उन्होंने
जैसे खाना पूर्ती कर डाली हो
जो दवा कही पत्नीजी ने
उस में एक दवा लगाकर फॉर्मेलिटी जैसे
उन्होंने उस वक्त निभा ली हो
अगर कोरोना का टेस्ट करवा लेता
डाक्टर भी मुस्कुरा के इलाज कर देता
कैसा खेल निराला चल पड़ा है
अच्छा ख़ास इन लोगो ने इंसान
बिस्तर पर चिपका डाला है
अपनी कमाई में विघ्न न पड़ जाए
चाहे दूसरे का मरीज मर जाए
इनको सिर्फ और सिर्फ है पैसे से प्यार
चाहे किसी का घर उजाड़ जाए
पहले में इनको भगवान् कहता था
आज मैं ऐसे डाक्टर को राक्षस कहता हूँ
कलंकित कर दी सारी पढ़ाई
जग में अब होने लगी इनकी रुस्वाई
सच ही कहा किसी ने
जिस तन लागे वो तन जाने
काश ! वो ऐसा दिन भी आये
जब इनके घर से बेवजह
एक जनाजा पल में उठ जाए
अजीत कुमार तलवार
मेरठ