“वाह जमाना”
“वाह जमाना”
बोलते तो हैं बड़े मीठे-मीठे,
मगर बाजू में रखते खंजर हैं।
रखो पग फूँक के जमीन पर,
काँटों से भरा हुआ हर डगर है।
“वाह जमाना”
बोलते तो हैं बड़े मीठे-मीठे,
मगर बाजू में रखते खंजर हैं।
रखो पग फूँक के जमीन पर,
काँटों से भरा हुआ हर डगर है।