वास्तविक स्वरूप से अनविज्ञ
सूचना प्रौद्योगिकी के युग में, आज का मानव विज्ञ है
अपने वास्तविक स्वरूप से,मानव अनभिज्ञ है
आदमी हर क्षण, दुख और पीड़ा को जीता है
मूल स्वरूप से अनभिज्ञ, तनाव का बोझ ढोता है
मनुष्य चिंताओं में, जीवन खोता है
लाभ हानि सुख दुख हर्ष विषाद
यही तो है अंतस के फसाद
नहीं दे पाता इनको विराम
खोता रहता है जीवन मूल्यवान
धर्म को अंदर नहीं देखता, बाहर तलाशता है
कर्मकांड सिद्धांत रीति रिवाज में
खुद को भी बिखेरता है
आडंबर दिखावा ढोंग, बन गया आचरण का स्वांग
धर्म अलौकिक नहीं, अंतस आचरण है
सही को सही और गलत को गलत
सही अर्थों में धर्म को जीना
सुख शांति समृद्धि का मर्म है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी