वापसी
तुम ने बदल कर
बिस्तर में डाल दिया था
कुछ मुहूर्तों को
उनमें से एक को पहन लिया तो
बीत गये इंतजार के पल
कोशिश तो कितनी की
प्यार के अनुभव को
भुलाने के लिए
पर क्या करें यहाँ तो बहुत ही
कठिन प्रश्नपत्र मिलता है
समाधान करने के लिए
धीरे-धीरे बीतने
वाला समय , कभी कभी
फँस जाता है धागों की तरह
अंधेरी कोठरी में
उदास झरोखे
इंतजार करते हैं किसी की
वापसी का
क्या सचमुच कोई कभी
वापस आया है
किसी के इंतजार को
सफल करने के लिए
द्वापर युग से कलियुग तक
ख़ाली तारीख़ें बीतने लगी हैं
कैलेंडर में
जो चला जाता है वो क्या
ख़ाली समय है
सब को तो जाना पड़ता है
जब जिसकी बारी आती है
मैं जा रही हूँ
मेरे पाँव की आहट
बिल्ली जैसी
हे !झरोखे
इंतजार के चौखट को लाँघकर
तुम भी आगे निकल जाओ
ठीक एक ग़ुब्बारे जैसे
क्योंकि सब को पता है
बहुत ही कठिन प्रश्नपत्र
मिलता है यहाँ
समाधान करने के लिए।
पारमिता षड़ंगी