वाणी से उबल रहा पाणि
वाणी से उबल रहा पाणि
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पानी उबल रहा वाणी से
दिल में आग वाणी में पानी
चूल्हे उबाल रहा चाय और पानी
गमपीपीकरजीरहे ज्ञानीबलदानी
जन जनकी यही कहानी जुवानी
चाहत बडीइच्छा की है मनमानी
आहत हो गमसे जीते भारतज्ञानी
उबल रहे जन में चाय और पानी
किसके पास है समय कहां जो
सुनतेतेरी प्यारभरी कहानीवाणी
निजको मान अभिमानी घमण्डी
महाज्ञानी मान ये न बुझते समझे
औरोंकी सुनतेहीनहीशांतिवाणी
रिपुहुंकार वर्बस उबालरहा पाणि
जग सुन कहानी की इक वाणी
समय नहीं जो सुनी जानी वाणी
चूल्हे पर उबल रहा पानी कैसे
चाय पकेगी समझ जगज्ञानी
मर्म समझना होगा भारत ज्ञानी
तन खड़ा हिम पर दिल में आग
कंधे पर अंगार हुंकार वीरों का
अम्बर भरा बारूद व वारिद है
सरहद सीमा पर फड़क तड़क
फुफकार रहा विष भरा सहत्र
अस्त्र शस्त्र वीर वाणी पाणि
वर्फ गड़े जवानों के बम्बू बीच
तम्बू मे उबल रहा चाय व पानी
फूंक फूंक पी रहा भारत वीरज्ञानी
सर से जब पानी गुजर जाता है
शांति समझौता रेखा सरहद पर
जर्बन बदला जाता तब खून पाणि
उफ़ान भरने लगता चाय व पानी
क्रांति भ्रांति रूप लेता वीर वाणी
ललकार अंगार उगलने लगता
वर्फ गर्म कर देता वीरो की वाणी
बम गोले बर्षा कर वर्फ गरम कर देता
समझौता गुहार लगाने लगता रिपु वाणी
घबरा दुश्मन घुटने टेक बैठ प्राणों की
भीख मांगता अज्ञानी कदम कंधे नीचे
शीश रख पाणि पी नहीं पाते फिर से ये
भीरू तम्बू में उबल रहे चाय और पानी
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तारकेश्वर प्रसाद तरुण