वाणशैय्या पर भीष्मपितामह
वाणशैय्या पर भीष्मपितामह
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हे अर्जुन वाणशैय्या पर , मुझको लिटा दो ,
बाण गुच्छों का सेज तुम,शिरहन बना दो।
सूरज का रथ देखो, अभी दक्षिण मुड़ा है ,
प्रण किया हूँ प्राण दूंगा नहीं,बिस्तर सजा दो।
प्रण और सत्यवचनों से ,जो कभी भागा नहीं है ,
गंगापुत्र की भीष्म प्रतिज्ञा थी क्या,सबको सुना दो।
वरदान मुझे इच्छामृत्यु का,पितृभक्ति से मिला है ,
दो मास तक प्राणोत्सर्ग होगा नहीं,यम को सुना दो।
पूर्व जन्म में इक पाप से जो ,मैं ग्रसित हुआ था ,
एक खग के अभिशाप से ,मैं तो शापित हुआ था।
अश्वारोही बन जिस खग को,
कंटक धरा जख्मित किया था ,
कई दिनों तक उस खग के,
कष्टों से ही मैं व्यथित हुआ था।
रवि की गति ,अब हो रही उत्तरायण है ,
भास्कर रथ भी,मकर चढ़ने को परायण है,
हस्तिनापुर को देकर सुरक्षित हाथों में ,
भीष्मपितामह ! तुझे लेने तैयार,खुद नारायण है।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १५ /०१/२०२३
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विक्रम संवत २०७९
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