वाचिक जतरगा छन्द
वाचिक जतरगा छन्द
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चलें शिशिर अब यहां हवायें।
गिरे गगन हिम ढकीं दिशायें।
न सूर्य किरणें निकल रहीं है।
नहीं फिजायें बदल रहीं हैं।
कि आस हमको बसन्त की है।
मिलें फिजायें बहार की हैं।
खिलें लता और पुष्प सारे।
तभी मिलेंगी नई बहारें।
अदम्य