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24 Aug 2022 · 1 min read

वाकिफ़ कहाँ हो तुम

ग़ज़ल
समंदर सी दिली गहराई से वाकिफ़ कहाँ हो तुम।
यही सच है मेरी अच्छाई से वाकिफ़ कहाँ हो तुम।।

पिघल जाएगा पत्थर दिल यकीनन आज मचलेगा।
सँभल जाओ मेरी अँगड़ाई से वाकिफ़ कहाँ हो तुम।।

जमाने की नज़र में तो भले बहतर सुख़नवर हो।
अभी भी क़ाफ़िया पैमाई से वाकिफ़ कहाँ हो तुम।

निगाहों से छुआ तुमने सनम सारा बदन मेरा।
मुहब्बत में हदे बीनाई से वाकिफ़ कहाँ हो तुम।।

दिलो में ज़ह्र हो लेकिन लबों पर बोल मीठे हैं।
अजी खुदगर्ज़ की दानाई से वाकिफ़ कहाँ हो तुम।।

सियासी दौर में मुश्किल हुई दो वक़्त की रोटी।
दिनों दिन बढ़ रही मँहगाई से वाकिफ़ कहाँ हो तुम।।

ये माना चाँद हम सबकी छतों पर रोज़ आता है ।
मगर आकाश की ऊँचाई से वाकिफ़ कहाँ हो तुम।।

तलब दीदार की तुमको यहां तक खींच लायेगी।
मेरे रुखसार की रानाई से वाकिफ कहाँ हो तुम।।

चलो देखो कभी लाशों में कैसे सांस चलती है
जुदाई में मिली तन्हाई से वाकिफ कहाँ हो तुम।।

भटक जाते हैं अक्सर ज्योति झूठी वाहवाही में।
सुखन की हौसलाअफजाई से वाकिफ़ कहाँ हो तुम।।

✍🏻श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव

Language: Hindi
133 Views
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