वह है
मेरे इस संसार में
मैं हूँऔर एक वह है|
वह मेरे लिए अजनबी,
कुछ पहचाना सा,
कुछ अंजाना सा,
मगर मैंने उसे देखा नहीं
सिर्फ महसूस किया है|
उन पलों में उसको,
जब पाकर कोई जख्म,
दर्द के अंतहीन गर्त में,
असहाय तड़पती हूं
पाने को कोई सहारा|
तब वह होले से मेरे सिर को
दुलरा देता है, सहला देता है|
जैसी मां अपने आंचल में
शिशु को अभय देती है|
मैं पाकर उसका एहसास
किलक उठती हूं,
अश्रु सिक्त आंखों में
लेकर नया विश्वास|
वह है,वह है ,वही है
जो मुझे जीवन देता है|
प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव फेज 2nd
जयपुर रोड अलवर