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19 May 2021 · 1 min read

वह बचपन की बारिश

वो बिजली का कड़कना ,वो बादलों का गर्जना
वो सरसराती हवा का चलना, संग बरसात का बरसना
वह बरसात आज फिर बचपन में ले जाती है
वह बचपन के बरसात की फिर याद आती है
मां के डांट की कोई परवाह किए बिना
दोस्तों के संग था बस बारिश में भीगना
जब वह बरसात की बूंदे गालो को छूती थी
तो उस बारिश की बूंद को हाथों में लेने की कोशिश थी
फिर वह कागज की कश्ती बना उस बरसात में उसे चलाना था
बस दोस्तों के साथ उस बरसात में भीग जाना था
कभी तो अपना छाता छुपा लेना और खुद को भीगो लेना
फिर उस गीली मिट्टी में खेलना और कूदना
फिर कोई बिना वजह दोस्तों के संग यूं मुस्कुराना
उस बारिश में दोस्तों के संग भीग जाना
वह बरसात आज फिर बचपन में ले जाती है
वह बचपन की बरसात की फिर याद आती है
वह बचपन की बरसात चेहरे पर फिर मुस्कान ले आती है

2 Likes · 4 Comments · 514 Views

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