वह बचपन अपना था
कितना सुंदर सपना था ,
वह बचपन अपना था,
कोई बता दे बचपन का मोल,
धन लेकर दे दे वो पल अनमोल,
ना चिंता थी ना था कोई गम ,
उछलते-कूदते थे उम्र थी कम,
बहुत याद आता है मां का दुलार,
पिता की डांट बहनों की पुकार,
पगडंडियों का जमाना कीचड़ से सने कपड़े ,
याद आता पनघट का जमघट और लू के थपेड़े,
खेलते थे हम हाथों में लेकर धूल ,
ऐसे महकती थी जैसे हो फूल ,
गिनते थे नभ के तारे और सितारे ,
पेड़ों पर चढ़ते थे हम मित्र सारे ,
खो जाने दे मुझको मेरे बचपन में ,
धीरे-धीरे जा रहे उम्र पचपन में ,
समय थमता नहीं समय रुकता नहीं ,
हम चले जाएंगे रहेगी धरा यहीं,
।।जेपीएल।।।