वह फूल हूँ
देश वीरों के चरण की शुभ-सुपावन धूल हूँ।
मातृ-क्षित के अति सुहावन सुपथ हित की भूल हूँ।
मुझे रौंदो,मैं मरूँ, जन्मूँ अनंतों बार भी।
फिर मरूँँ, पद-घाव मरहम बन हँसू, वह फूल हूँ।
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता