वह प्राचीन पेड़
“पेड़ो से बाग महकते थे,
हरियाली देख नैना थकते थे,
आत्मीयता का बहता था सागर,
मधुर वाणी हर पीड़ा को देती थी हर”
मेरे पर दादा जी ने अनेको पेड़ अपने बगीचे मे लगाये थे अपने परिश्रम से पूरा बाग हरियाली से लहराता था । पेड़ लगाकर उसका ध्यान तो रखते थे किंतु किसी को अहसास नही होने देते थे कि मैंने पेड़ लगाये है न ही इस बात का ढिंढोरा पीठते थे । जब भी समय मिलता था, आते जाते एक पेड़ लगा दिया करते थे साथ ही अपने मित्रो को भी पेड़ लगाने के लिये उत्साहित करते रहते थे । उनको समझाते थे कि पेड़ तो भगवान का वरदान है । उनके लगे पेड़ बारिश मे पानी को सहते, सर्दी में ठिठुरते और गर्मी में तपते थे किंतु वह उनको सब सहने देते थे । अक्सर कहा करते थे कि इनको ज्यादा लाड़ नही लड़ाना नही तो कमजोर रह जायेंगे । भविष्य की आग, आंधी तूफान से टकराने का सामर्थ्य तब ही आएगा जब वह अपने शैशव काल से ही इनसे परिचित होंगे । उनके लगाये पेड़ो को खाद भी नही देते थे । एक बात तो है कि पर दादा जी उनसे ज्यादा दिन दूर नही रह सकते थे, दिन में एक बार घूमते फिरते उनको दूर से ही देख लिया करते थे । हमेषा कहा करते थे कि आज के यह मेरे नन्हे नन्हे पेड़ भविष्य में बड़े मीठे फल देंगे । इनकी छाया में मुझे जो सुकून मिलेगा वह मां की गोद के समान होगा । इनकी डालियों से जब मैं झूले लगाकर झूलूंगा मुझे अपनी मां की लोरियां याद आ जाएगी । जैसा उन्होने सोचा था सबकुछ वैसा ही हुआ , वह पेड़ अपनी बड़ी बड़ी टहनियां फैलाकर कह रहे हो कि आओ मुझ पर झूलो, मेरी ठंडी छाया में विश्राम करो, मेरे मीठे मीठे फल खाकर मुझे अपना तनिक ऋण चुकाने का अवसर प्रदान करो । पर क्या हुआ ….?.वह बाग बगीचे लगाने वाले कब के जा चुके थे, एक ऐसे सफर पर जहां से लौटने का कोई मार्ग न था । वो पेड़ सारी उम्र उनकी राह देखता रहता है, जब कोई भी उनकी शीतल छाया में पलभर थकान दूर करने के लिये विश्राम करता तब पेड़ के हृदय को बड़ी आत्म तृप्ति मिलती है ।
आज कल भी उसी बगीचे में पेड़ लगाये जा रहे है और शायद हमेशा लगते रहेंगे किंतु पेड़ लगाने का तरीका बदल गया अब केवल एक या दो पेड़ ही लगाते है । पेड़ लगाने से पहले ही सबको बताते हे कि आज मैने पेड़ लगा दिया है, उस पेड़ के साथ तस्वीर निकाल कर पूरे शहर भर में ढिढोरा पीठते है । उसकी देखरेख ऐसे करते है कि पहले ही दिन से छाता लगाकर खड़े हो जाते है । उसको सर्दी, गर्मी और बारिश का अहसास भी नही होने देते है । वह नन्हा पौधा मौसम की विभिन्नता और ऋतुओ का चक्रण सब भूल जाता है , यहां तक कि नन्हे पौधे ने कभी नभ, मेघ और तारे भी नही देखे । थोड़ा भी कमजोर होने पर चिकित्सको की लाईन लगी रहती थी । अब वह नन्हा पौधा बड़ा हो गया था, किंतु उसमे मीठे फल नही लगे, टहनियां कमजोर थी झूला लगाकर झूल भी नही सकते थे । लेकिन देखने में बड़ा ही सुंदर था किसी का भी मन मोह लेता था । एक दिन किसी विदेषी के मन को भा गया, वह उस पौधे की कीमत देकर अपने साथ बहुत दूर ले गया । जीवन भर जिस पौधे को इतने यत्न और प्यार से पाला था, वही पौधा हमको छोड़कर चला गया था । पैसे से मन की आत्म संतुष्टिपूर्ण ठण्डी छाया प्राप्त नही की जा सकती है । अब वह बगीचा और उसके जैसे अन्य बगीचे धीरे धीेरे वीरान होते गये । अब लोगो ने नई पद्धिति से पौधे लगाना शुरु कर दिया जिसमे बीज को कही और लगाया जाता है फिर पौधे आने पर आपको दे दिया जाता है, किंतु वह आत्मीयता और संस्कार कैसे आ सकते उस पौधे में । बगीचे का वह पौधा जो पर दादा जी लगा गए थे अब सूख चुका था, किंतु उसकी लकड़ी भी काम आ गई जाते जाते वह पेड़ अपनी लकड़ी से छह माह की जलाऊ लकड़ी देकर चला गया ।।।
।।।जेपीएल।।।