वही मन का
तरही ग़ज़ल
—————
मतला
——–
वही मन का मेरे दरपन हुआ है
जिसे पा कर मगन गुलशन हुआ है
गिरह
——-
चला मेले से हामिद ले के चिमटा
‘खिलौनों से जुदा बचपन हुआ है’
उधर गुज़रा कोई मेरी गली से
इधर तन-मन मेरा चन्दन हुआ है
वही है शायरी की रूह में अब
जो मुझसे बेवफ़ा बदजन हुआ है
घिरी हैं फिर से यादों की घटाएं
मेरी आँखों में फिर सावन हुआ है
मक़्ता
——-
‘असीम’ आओ नयी दुनिया बसाएं
कई टुकड़ों में घर-आँगन हुआ है
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’