वही तो लोग ज़माने में हो रहे रौशन
वही तो लोग ज़माने में हो रहे रौशन
चराग़ इल्मो-हुनर का जो कर गये रौशन
तुम्हारी याद से दिल ये उजाल रहता है
तुम्हीं से ज़हन के होते है बल्ब ये रौशन
सुब्ह त शाम हुआ एक फ़क़त तेरा ज़िक्र
हुई मिलाद हुए तेरे तज़किरे रौशन
वो मुंतज़िर है मिरी ज़ात में समाने को
यहाँ प होते है ऐसे भी सिलसिले रौशन
अगरचे ज़िक्र ग़ज़ल में तिरा जो छिड़ जाए
रदीफ़ महके है होते है काफ़िये रौशन
‘नज़र’ ख़मोश रहा फिर भी कह गया मुझसे
क़लम संभाल अँधेरे को जो लिखे रौशन
नज़ीर नज़र