वहाँ ज़िन्दगी खड़ी थी।
कुछ थे सवाल तेरे तो कुछ थे सवाल मेरें |
कुछ थे जवाब मेरें तो कुछ थे जवाब तेरे |
परेशानियों के साये हम दोनों को ही थे घेरें ||1||
कुछ तेरी शिकायत थी कुछ मेरी शिकायत थी |
कुछ मेरी शराफत थी कुछ तेरी शराफत थी |
हर सम्त से आई थी वह कैसी क़यामत थी ||2||
कुछ मेरी मुहब्बत थी कुछ तेरी मुहब्बत थी |
कुछ तेरी जरूरत थी कुछ मेरी जरूरत थी |
हम चाहतें तो मिल जाते अभी बाकी गनीमत थी ||3||
कुछ तुममें दूरियाँ थीं कुछ हममें दूरियाँ थीं |
कुछ तुममें गल्तियाँ थीं कुछ हममें गल्तियाँ थीं |
मजधार में फसीं हम दोनों की ही कश्तियाँ थीं ||4||
कुछ तो तेरी कमी थीं कुछ तो मेरी कमी थीं |
आँखो ंमें मेरे भी नमी थीं आँखों में तेरे भी नमी थीं |
मिल बाँट कर जी लेते वह हम दोनों की जिन्दगी थीं ||5||
कुछ तो मेरी रजा थी कुछ तो तेरी रजा थी |
हमने भी जी सजा थी तुमने भी जी सजा थी |
हर चीज़ की वजा थी कुछ भी ना बे वजा थी ||6||
तुम भी थे फुरसत में हम भी थे फुरसत में |
हम भी थे गुरबत में तुम भी थे गुरबत में |
तुम्हें मुबारक हो ये ज़िन्दगी हम तो हैं अब कुरबत में ||7||
कुछ तुमनें भी सुनी थी कुछ हमनें भी सुनी थी |
आवाज थी वो मेरी और आवाज थी वो तेरी |
पिछे ना मुडके देखा किसी ने वहाँ ज़िन्दगी खड़ी थी ||8||
ताज मोहम्मद
लखनऊ