वस्तुस्थिति
सच्चाई घटते घटते दम तोड़ने के हालत में है,
झूठ और फरेब ईन्सान की बात बात में है.
झूठ बोलने में कितना आत्मविश्वास है,
धोखा धड़ी और फरेब के लिए नए नए रास्तों की तलाश है.
हज़ार बुराइयां दूसरों में गिनवाते है,
जब कि उन्ही बुराइयों के बोझ से खुद दबे जाते हैं.
सभी उधर भागते हैं जहाँ काम के नाम पर आराम हो,
धनवृद्धि के नए नए आयाम हों.
जहाँ सर्वोपरि स्वार्थ सिद्धि हो,
शारीरिक चर्बी और काले धन में दिनों दिन वृद्धि हो.
लोग दूसरों को सत्कर्म करने की कह भर रहे हैं,
जब कि वही कुछ खुद नहीं कर रहे हैं.
सच्च के साथ आज कम लोग लगे हैं,
कम लोग हैं जो सोये सोये हालात में भी जगे हैं.
वे कोशिश में हैं कि हक के साथ साथ कर्तव्य का भी बोध हो,
कर्तव्य पूरा करने के साथ साथ ही हक का अनुरोध हो.
हक के साथ कर्तव्य बोध पर है जोर,
शायद तभी तो हैं वे लोग संख्या में कमजोर.
उनकी आवाज नकारखाने में तूती की सी है,
समाज में उनकी स्थिति शरीर में जूती की सी है.
लेकिन धन्य हैं वे लोग जो विपरीत परिस्थितियों में भी डटे हैं,
चाहे उनके दिन रात कितने ही कष्टों में कटे हैं.
कर्म का सन्देश देने वाली भूमि पर ही आज कर्म की धज्जियां उड़ रही हैं,
पतन के गर्त में जाने की नयी नयी कड़ियां जुड रही हैं.
आज हम अपने भूत काल पर इतराते हैं,
हमने संसार को कर्म का दर्शन दिया बात बात में जताते हैं.
क्या दूसरों के लिए है वो कर्म का सन्देश ?
हमारे यहाँ क्रियान्वयन के लिए क्या उचित नहीं है परिवेश ?