वसन्त
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फूली सरसों ने दिए रंग
अमराई ने भर दी सुगंध
नव अलंकार सजे आद्यंत
कलियों में मुस्काया वसन्त।
आज शरद ने ली अंगड़ाई
नवांकुर पर छाई तरुणाई
प्रकृति छेड़ती मल्हार अनन्त।
सुवर्ण रूप आया वसन्त।
मन में कोमल से भाव सजे
कानों में राग अनेक बजे
हृदय दुखों का होता अंत
छाया जीवन में वसन्त।
गेहूं की बाल खड़ी इठलाये
जौ धीरे धीरे से सकुचाये
पीत फूल मेड़ों पर अनंत
वसुधा को वरण करे वसन्त।
कोकिल कूक कूक पुकारे
भ्रमर अनेक सुधारस वारे
प्रकृति हुई कितनी जीवंत
आए हैं ऋतुराज वसन्त।
हृदय बेल में पल्लव फूटे
लहराये हैं पीत दुपट्टे
प्रेम हुआ है आज दिगन्त
जीवन में आया है वसन्त।
नव कलियों के श्रृंगार लिए
आये हैं देखो प्रकृति कन्त
बना रहे हर पल मधुमास
मुस्काये जीवन में वसन्त।
~ माधुरी महाकाश