वसंत की हवा
वसंत की हवा चली, प्रफुल्ल है कली-कली।
प्रसून भी खिले कई,
सुगंध है नई-नई ।
विरंच की विभावरी, किशोर उम्र में ढली।
समष्टि में विलास है,
मनुष्य में हुलास है।
नई जिजीविषा जगी, पराग से भरी फली।
हरी-हरी वसुंधरा, हृदेश हर्ष से भरा।
अनंत आसमान में, छटा सुदर्श श्यामली।
प्रमत्त भृंग सांवरा ,
नवोन्मेष से भरा।
डली-डली लजा रही, लुभा रहा उसे छली।
नया विवर्त वर्ष है, उमंग और हर्ष है।
समूल सृष्टि में नई , उमीद की प्रभा जली।