वसंत की छटा
हाकलि छंद
१४मात्रिक
चरणांत-गुरु
वसंत की छटा पर एक सजल/गीतिका
झूम रही तरु डाली है।
पेड़ों पर हरियाली है।।(१)
अमुआ बौर महकता ये,
गाती कोयल काली है।(२)
दिग-दिगंत में पुष्प खिले ,
धरा हुई मतवाली है।(३)
फूलों की मधु गंध लिए,
बहती पवन निराली है।(४)
सकल धरा के कण-कण में,
छायी मस्ती आली है ।।(५)
मनभावन वसंत आया,
आनंदित जग-माली है।(६)